Bismillah sharif ke zariye 13 ruhani ilaj

 बिस्मिल्लाह की बरकत के तेरह हुरूफ़ की निरखत से بسم الله الرحمن الرحيم के 
13 म-दनी फूल

(1) हज़रते सय्यिदुना शैख अबुल अब्बास अहमद बिन अली बूनी

शम्सुल मआरिफ (मुतर्जम) के सफ़्हे 37 पर लिखते हैं:

जो बिला नागा सात दिन तक  بسم الله الرحمن الرحيم

786 बार (अव्वल आखिर एक बार दुरूद शरीफ) पढ़े إن شاء الله उस की

हर हाजत पूरी हो। अब वोह हाजत ख़्वाह किसी भलाई के पाने की

हो या बुराई दूर होने की या कारोबार चलने की।

(शम्सुल मआरिफ مترجم، ص ۳۷)


(2) जो किसी ज़ालिम के सामने   بسم الله الرحمن الرحيم 

50 बार (अव्वल आखिर एक बार दुरूद शरीफ) पढ़े उस ज़ालिम के दिल में पढ़ने वाले की हैबत पैदा हो और उस के शर से बचा रहे ।

(ऐज़न, स. 37)


(3) जो शख़्स तुलूए आफ्ताब के वक़्त सूरज की तरफ रुख कर के

  بسم الله الرحمن الرحيم 

300 बार और दुरूद शरीफ 300 बार पढ़े

अल्लाह عَزَّوَجَلْ उस को ऐसी जगह से रिज़्क अता फरमाएगा जहां उस

का गुमान भी न होगा। और (रोज़ाना पढ़ने से( ان شاءالله )एक साल

के अन्दर अन्दर अमीरो कबीर हो जाएगा ।

(ऐज़न, स. 37) 

(4) कुन्द जेहन अगर 

 بسم الله الرحمن الرحيم 

786 बार (अव्वल आखिर एक बार दुरूद शरीफ) पढ़ कर पानी पर दम कर के पी ले तो

ان شاء الله उस का हाफ़िज़ा मज़बूत हो जाए और जो बात सुने याद रहे।

(ऐज़न, स. 37) 

(5) अगर कलह माली हो तो 

 بسم الله الرحمن الرحيم 

61 बार अव्वल आखिर एक बार दुरूद शरीफ) पढ़ें, (फिर दुआ करें( ان شاء الله 

बारिश होगी ।

(ऐज़न, स. ३७)

6,7﴿  بسم الله الرحمن الرحيم  काग़ज़ पर 35 बार (अव्वल आखिर

एक बार दुरूद शरीफ) लिख कर घर में लटका दे ان شاء الله शैतान

का गुज़र न हो और खूब बरकत हो। अगर दुकान में लटकाएं तो ان شاء الله कारोबार खूब चमके । 



(8) यकम मुहर्रमुल हराम को  

  بسم الله الرحمن الرحيم                                                                         

130 बार लिख कर (या लिखवा कर) जो कोई अपने पास रखे (या प्लास्टिक

कोटिंग करवा कर कपड़े, रेग्ज़ीन या चमड़े में सिलवा कर पहन ले) ان شاءالله उम्र भर उस को या उस के घर में किसी को कोई बुराई न

पहुंचे ।

(ऐज़न, स. 38)

मस्अला : सोने या चांदी या किसी भी धात की डिबिया में ता'वीज़

पहनना मर्द को जाइज़ नहीं । इसी तरह किसी भी धात की ज़न्जीर

ख़्वाह उस में ता'वीज़ हो या न हो मर्द को पहनना ना जाइज़ व गुनाह

है। इसी तरह सोने, चांदी और स्टील वगैरा किसी भी धात की तख्ती

या कड़ा जिस पर कुछ लिखा हुवा हो या न लिखा हुवा हो अगर्चे

अल्लाह का मुबारक नाम या कलिमए तय्यिबा वगैरा खुदाई किया हुवा हो

 उस का पहनना मर्द के लिये ना जाइज़ है। औरत सोने चांदी की डिबिया में ता'वीज़ पहन सकती है।

(9) जिस औरत के बच्चे ज़िन्दा न रहते हों

 بسم الله الرحمن الرحيم 

 वोह 61 बार लिख कर (या लिखवा कर) अपने पास रखे (चाहे तो मोमजामा या प्लास्टिक कोटिंग कर के कपड़े, रेग्ज़ीन या चमड़े में सी कर गले में पहन ले या बाजू में बांध ले। (إِن شَاءَ الله बच्चे जिन्दा रहेंगे।

(10) घर का दरवाजा बन्द करते वक्त याद कर के 

" بسم الله الرحمن الرحيم "

 पढ़ लीजिये शैतान (सरकश जिन्नात) घर में दाखिल न हो सकेंगे।

 (راوی:عمر فاروق رضی الله عنه صحیح البخاری ج ۳ ص ٥٩١ حدیث ٥٦٢٣)

(11) रात को खाने पीने के बरतन बिस्मिल्लाह शरीफ पढ़ कर ढक दीजिए ,

 अगर ढकने के लिए कोई चीज़ न हो तो "  بسم الله الرحمن الرحيم " कह कर बर्तन के मुँह पर तिनका वगैरा रख दीजिए।

(एज़न)

मुस्लिम शरीफ की एक विरायत में है, साल में एक रात ऐसी आती है कि उस में वबा उतरती है जो बर्तन ढका हुआ नहीं है या मश्क का मुँह बंधा हुआ नहीं है अगर वहाँ वोह वबा गुज़रती है तो उस में उतर जाती है।

(12) सोने से पहले " بسم الله الرحمن الرحيم " पढ़ कर तीन बार बिस्तर झाड़ लीजिए ان الله عز وجل मुझियात (या'नी ईज़ा देने वाली चीज़) से पनाह हासिल होगी ।

(13) कारोबार में जाइज़ लेन देन के वक्त या'नी जब किसी से ले तो "بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَنِ الرَّحِيمِ" पढ़े और जब किसी को कर्ज़ दे तो "بسم الله الرحمن الرحيم" कहें  ان شاء الله खूब बरकत होगी 

या रब्बे मुस्तफ़ा हमे"بسم الله الرحمن الرحيم" की बरकतों से मालामाल फरमा और हर नेक व जाइज़ काम की इब्तिदा में "بسم الله الرحمن الرحيم" पढ़ने की तौफीक अता

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